होली पर वीरान रहते है ये तीन गांव, जाने क्यों
रुद्रप्रयाग।
देशभर में जहां होली धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन रुद्रप्रयाग जिले के तीन गांव होली नहीं खेली जाती है। रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लाॅक की तल्लानागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांवों में ग्रामीण एक-दूसरे को रंग नहीं लगाते हैं। आज से 350 साल पहले जब ये गांवों यहां बसे तो कुछ लोगों ने होली खेलने का प्रयास किया, लेकिन कई लोग हैजा जैसे बीमारी की चपेट में आ गये। इसके बाद फिर से कई सालों बाद होली खेली गई तो फिर से हैजा हो गया कई लोगों को जान गंवानी पड़ी। दो बार घटना घटने के बाद तीसरी बार किसी ने भी होली खेलने की हिम्मत नहीं जुताई। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर बसे क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव की बसागत भी करीब 350 साल पूर्व की बताई जाती है। यहां के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ वर्षो पूर्व यहां आकर बस गए थे। ये लोग तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए थे, जिसे गांव में स्थापित किया गया। मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है। इसके अलावा तीन गांवों के क्षेत्रपाल देवता भेल देव को भी यहां पूजा जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कुलदेवी और ईष्टदेव भेल देव को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है। इसलिए वे सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं। पाण्डेय, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य चन्द्रशेखर पुरोहित, माहेश्वर प्रसाद पुरोहित, सुधाकर पुरोहित, रितेश पाण्डेय, सुनिता देवी, कमला देवी ने बताया कि कई सालों पहले जब गांव में होली खेली गई तो हैजा (उल्टी-दस्त) जैसी बीमारी के कारण लोगों की मौत होने लगी। इसके बाद कष्ट के निवारण को लेकर ग्रामीणों ने काफी प्रयास किये, जिसमें पता चला कि क्षेत्रपाल व ईष्ट देवी का दोष लगा है और गांव में होली खेलने से यह सब कुछ हुआ है। इसके बाद कई वर्ष बीत जाने के बाद होली नहीं खेली गई, लेकिन दूसरी बार फिर किसी ग्रामीण ने होली खेली तो घटना की पुनरावृत्ति हो गई। लोग काल कलवित हो गए। इसके बाद तो लोगों के मन में भय सा बन गया और ग्रामीणों ने आज तक होली नहीं खेली है। ।
