Mon. Sep 23rd, 2024

धूमधाम से मनाया लोकपर्व फूलदेई

ऊखीमठ। 

लोकपर्व फूलदेई त्यौहार सभी गांवों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों में उत्साह व उमंग से मनाया गया। अपर शिक्षा निदेशक गढवाल के निर्देशन पर पहली बार सभी शैक्षणिक संस्थानों में लोकपर्व फूलदेई त्यौहार धूमधाम से मनाया गया जिसमें सभी विद्यालयों के नौनिहालों ने बढ़ – चढकर भागीदारी की। सम्पूर्ण गढ़वाल क्षेत्र में लोकपर्व फूलदेई त्यौहार आठ दिनों तक मनाया जाता है जबकि कुछ स्थानों पर फूलदेई त्यौहार, फुलारी महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है तथा कुछ गांवों में फूलदेई त्यौहार के आठवें दिन घरों में उगाई गयी जौ की बालियां प्राकृतिक जल स्रोतों पर विसर्जित कर फूलदेई त्यौहार को बी माता के रूप में मनाने की परम्परा है। फूलदेई त्यौहार को नौनिहालों ब्रह्म बेला पर घरों की चौखट पर अनेक प्रजाति के पुष्प विखेर कर मनाते है तथा बसन्त ऋतु आगमन का सन्देश देते है। फूलदेई त्यौहार में घोघा नृत्य मुख्य आकर्षण माना जाता है तथा ब्रह्म बेला पर नौनिहालों द्वारा अनेक प्रजाति के पुष्प विखेरने के साथ अनेक प्रकार के गीत गाने की परम्परा आज भी जीवित है। चैत्र मास के आठवें दिन फूलदेई त्यौहार को सामुहिक भोज के साथ मनाया जाता है तथा घोघा को गाँव के किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित किया जाता है। फूलदेई त्यौहार को चैत्र मास की संक्रांति से मनाने की परम्परा प्राचीन है। फाल्गुन माह की मासान्त को नौनिहालों द्वारा सूर्य छिपने के बाद खेत – खलिहानों से फ्यूली सहित अनेक प्रजाति के पुष्पों को रिंगाल की टोकरी में एकत्रित किया जाता है तथा रात्रि में पुष्पों को खुले आसमान में रखा जाता है। टोकरी में एकत्रित पुष्पों को बन्द कमरे में रखने पर पुष्प जूठे माने जाते है। चैत्र मास की संक्रांति से ब्रह्म बेला पर गांव के मध्य मन्दिरों मे पुष्प अर्पित करने के बाद फूलदेई त्यौहार शुरू हो जाता है तथा नौनिहालों द्वारा हर घर की चौखट पर पुष्प विखेर कर बसन्त आगमन का सन्देश दिया जाता है अपर शिक्षा निदेशक गढ़वाल महावीर बिष्ट के निर्देशन पर इस बार फूलदेई त्यौहार सभी विद्यालयों में धूमधाम से मनाया गया प्रकृति प्रेमी आचार्य हर्ष जमलोकी बताते है कि फूलदेई त्यौहार मनाने की परम्परा बहुत प्राचीन है तथा फूलदेई त्यौहार मनाने से नौनिहालों में सौहार्द बना रहता है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि फूलदेई त्यौहार की महिमा का गुणगान युगीन पुरूषों, साहित्यकारों व संगीतकारों ने बड़ी करूणामयी ढंग से किया है। प्रधान रासी कुन्ती नेगी बताती है कि पूर्व में चैत्र मास में मांगल गीत गाने की भी परम्परा थी मगर धीरे – धीरे यह परम्परा विलुप्त हो गयी है। त्रिदिवसीय मदमहेश्वर मेला समिति सचिव प्रकाश रावत ने बताया कि कुछ गांवों में फूलदेई त्यौहार को बी माता त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। शिक्षाविद देवानन्द गैरोला ने बताया कि इस बार सभी विद्यालयों में फूलदेई त्यौहार धूमधाम से मनाया गय।

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