यहाँ आज भी खुद उगती है, पांडव की रोपी गई धान
लोक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ धाम में जब पांचों पाण्डवों को भगवान शंकर के पृष्ठ भाग के दर्शन हुए तो पांचों पाण्डव ने द्रोपदी सहित मदमहेश्वर धाम होते हुए मोक्षधाम भूवैकुष्ठ बद्रीनाथ के लिए गमन किया। मदमहेश्वर धाम में पांचों पाण्डवों द्वारा अपने पूर्वजों के तर्पण करने के साक्ष्य आज भी एक शिला पर मौजूद है। मदमहेश्वर धाम से बद्रीका आश्रम गमन करने पर पांचों पाण्डवों ने कुछ समय पाण्डव सेरा में प्रवास किया तो यह स्थान पाण्डव सेरा के नाम से विख्यात हुआ। पाण्डव सेरा में आज भी पाण्डवों के अस्त्र – शस्त्र पूजे जाते हैं और पाण्डवों द्वारा सिंचित धान की फसल आज भी स्वयं उगती है और पकने के बाद धरती में समा जाती है। पाण्डव सेरा में पाण्डवों द्वारा निर्मित सिंचाई नहर आज भी विद्यमान है और नहर में जल प्रवाह निरन्तर होता रहता है। पाण्डव सेरा से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित नन्दीकुण्ड में स्नान करने से मानव का अन्त: करण शुद्ध हो जाता है। यह भू-भाग बरसात के समय ब्रह्मकमल सहित अनेक प्रजाति के फूलों से आच्छादित रहता है। प्रकृति प्रेमी अभिषेक पंवार ने बताया कि मदमहेश्वर धाम से लगभग 20 किमी की दूरी पर पाण्डव सेरा और 25 किमी की दूरी पर नन्दीकुण्ड है। उन्होंने बताया कि मदमहेश्वर धाम से धौला क्षेत्रपाल, नन्द बराडी खर्क, काच्छिनी खाल, पनोर खर्क, द्वारीगाड, पण्डो खोली व सेरागाड पड़ावों से होते हुए पाण्डव सेरा पहुंचा जा सकता है । मदमहेश्वर धाम के व्यापारी भगत सिंह पंवार ने बताया कि मदमहेश्वर से पाण्डव सेरा – नन्दीकुण्ड तक फैले भू-भाग को प्रकृति ने अपने दिलकश नजारों से सजाया है इसलिए इस भू-भाग में पर्दापण करने से भटके मन को अपार शान्ति मिलती है! रासी कण्डारा गाँव निवासी रणजीत रावत ने बताया कि नन्दीकुण्ड में भगवती नन्दा के मन्दिर में पूजा – अर्चना करने से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होते हुए । देवेन्द्र सिंह ने बताया कि मदमहेश्वर – पाण्डव सेरा – नन्दीकुण्ड पैदल ट्रैक पर सभी संसाधन साथ ले जाने पड़ते है तथा पहली बार ट्रेकिंग करने वाले को गाइड के साथ ही ट्रेकिंग करनी चाहिए। मनोज पटवाल ने बताया कि मदमहेश्वर – पाण्डव सेरा – नन्दीकुण्ड के आंचल में बसे भू-भाग को बार – बार निहारने का मन करता है।
