भक्तों की रक्षा को यहां अवतरित हुई थी मां रशूलांण दीबा
- प्रीती नेगी/
देहरादून। देवभूमि उत्तराखण्ड में मौजूद हजारों शिवालयों, मन्दिरों की अलग, अलग धार्मिक मान्यताएं है। पौड़ी जिले में श्रदालुओं का आस्था का एक ऐसा केंद झलपानी में है ,जहां माता के दर्शन को श्रद्धालु रातभर नंगे पैर लगभग आठ किमी की खड़ी यात्रा करते हैं। माता जगदम्बा का यह मंदिर ब्लॉक पोखड़ा के ग्राम झलपानी से लगभग 8 किमी दूर पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है। इस स्थान पर मां दीबा भगवती को रशूलांण दीबा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां भक्तों को नंगे पैर रात को यात्रा करनी होती है। यहां से चारों धामों की पर्वत श्रृंखलाओं के साथ ही सूर्य उदय का अदभुत नजारा दिखाई देता है। इस मंदिर को लेकर अनेक मान्यताएं जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब यहां गोरखाओं का शासन था और उनका अन्याय बढ़ गया था तो कहा जाता है कि जब गोरखाओं ने यहां के खाटली पट्टी पर आक्रमण किया था, तो माँ जगदम्बा ने इस स्थान पर तब अवतार लिया था। इसके बाद मां भगवती ( दीबा ) ने एक पुजारी के सपने में आकर उससे क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी पर मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। इसके बाद पुजारी ने सबसे ऊंची पहाड़ी पर माता के मन्दिर बनवाया। इस पहाड़ी को अब दीबा डांडा नाम से जाना जाता है। मन्दिर बनने के बाद जब भी कभी कोई गोरखा क्षेत्रवासियों के साथ अन्याय करने की योजना बनाते तो मां दीबा उनके सपने में आकर या अन्य चमत्कारों से उनको आगाह कर दिया करती थीं। कहा जाता है कि सदियों पहले मंदिर के पास एक पत्थर था, कहा जाता था कि उस पत्थर को जिस दिशा में घूमाया जाता था, उस दिशा में बारिश होने लगती थी। आज उस पत्थर के स्थान पर मां दीबा की पौराणिक मूर्ति विराजमान है। एक और किदवंती के अनुसार सदियों पहले एक बरात वधू लेने जा रही थी। वधू के गांव का रास्ता मंदिर के आसपास से होते हुए जाता था। जब बरात मन्दिर के पास से गुजरी तो इस दौरान एक बुजुर्ग ने बरातियों से कहा कि हम शुभ कार्य के लिए जा रहे हैं और हमें मंदिर में जाकर माता का आशीर्वाद लेना चाहिए, लेकिन बरातियों ने बुजुर्ग की बातों पर ध्यान नहीं दिया और उसे बुरा, भला कहा। इस पर बुजुर्ग बरात के साथ जाने के बजाए माता के दर्शन को मन्दिर की ओर चल पड़ा। बुजुर्ग माता के दर्शन करके आधी रात को वधू के गांव पहुँचा, लेकिन उसे कोई भी बराती नहीं दिखाई दिया। ग्रामीणों ने बताया कि बरात नहीं पहुंची। उसके बाद बुजुर्ग और ग्रामीण बरातियों की तलाश में निकल पड़ा। वह उस स्थान पर पहुँचा, जहां बरातियों को छोड़कर गया। उसे वहां उसे विचित्र पेड़ दिखाई दिए। कहा जाता है माता के प्रकोप से सारे बराती पेड़ों में बदल गए थे। आज भी ये पेड़ वहां मौजूद हैं। इन पेड़ों की बनावट ऐसे दिखती हैं जैसे किकिसी ने ढोल, दमाऊं, मसकबीन पकड़ रखा हो। कहा जाता है कि इन पेड़ों पर अगर कोई धारदार वस्तु से चीरा लगाया जाए तो इन पेड़ों से एक तरल पदार्थ निकलता है , जो बिल्कुल खून जैसा दिखता है। मंदिर के आस-पास के पेड़ भंडारी जाती के लोग ही काट सकते है, यदि कोई और काटे पेड़ो से खून जैसा तरल पदार्थ निकलता है। चैत्रीय और शारदीय नवरात्र में यहां माता के दर्शन को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।