इस स्थान पर माता जगदम्बा ने लिया था अवतार
देहरादून।
देवभूमि उत्तराखण्ड में अनेक मन्दिर, शिवालय विराजमान हैं, जिनकी अलग, अलग धार्मिक मान्यताएं है। पौड़ी जनपद के पोखड़ा ब्लाक श्रदालुओं के आस्था का केंद एक ऐसा मन्दिर है,जहां माता जगदम्बा के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को रात को नंगे पैर लगभग आठ किमी की खड़ी चढ़ाई की पैदल यात्रा करनी होती है। श्रदालुओं के आस्था का यह केंद्र ब्लॉक पोखड़ा ब्लाक के ग्राम झलपनी से लगभग 8 किमी खड़ी चढ़ाई में पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है, जहां माता जगदम्बा विराजमान हैं। इस स्थान पर मां दीबा भगवती को रशूलांण दिबा के नाम से भी जाना जाता है। यह मातारानी का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां रात को नंगे पैर यात्रा करनी होती है। यहां से चारों धामों की पर्वत श्रृंखलाओं के साथ ही सूर्य उदय का अदभुत नजारा दिखाई देता है। इस मंदिर को लेकर अनेक मान्यताएं जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि उत्तराखंड में गोरखाओं का अत्याचार बढ़ गया था। जगदम्बा माता ने इस स्थान पर तब अवतार लिया था जब गोरखाओं ने खाटली पट्टी पर आक्रमण किया। कहा जाता है इसके बाद मां भगवती ( दीबा ) ने एक पुजारी के सपने में आकर उन्हें सबसे ऊंची चोटी पर मंदिर बनवाने को कहा। पुजारी ने ऐसा ही किया और समुंदर तल से सबसे ऊंची पहाड़ी पर मन्दिर का निर्माण करवाया। इस पहाड़ी को वर्तमान में दीबा डांडा नाम से जाना जाता है। मन्दिर बनने के बाद जब भी कभी कोई गोरखा क्षेत्रवासियों के साथ अन्याय करने जाते तो मां दीबा उनके सपने में आकर या अन्य चमत्कारों से उनको आगाह कर दिया करती थी। कहा जाता है कि सदियों पहले मंदिर के पास एक ऐसा पत्थर विराजमान था। कहा जाता है कि उस पत्थर को जिस दिशा में घूमा दिया जाए, उस दिशा में बारिश होने लगती थी। आज उस स्थान पर मां दीबा की पौराणिक मूर्ति विराजमान है। एक किदवंती के अनुसार सदियों पहले एक बरात वधू लेने जा रही थी, वधू के गांव का रास्ता माता भगवती के मंदिर के सामने से होते हुए जाता था। जब बरात मन्दिर के पास से गुजरी तो इस दौरान एक बुजुर्ग ने बरातियों से कहा कि हम शुभ कार्य के लिए जा रहे हैं और हमें मंदिर में जाकर माता का आशीर्वाद लेना चाहिए। लेकिन बरातियों ने बुजुर्ग की बातों पर ध्यान नहीं दिया आवर उसे बुरा, भला कहा। इस पर बुजुर्ग ने माता के दर्शन की इच्छा जताई और मन्दिर की ओर चल पड़ा। बुजुर्ग माता के दर्शन कर आधी रात को वधू के गांव पहुँचा, लेकिन उसे कोई भी बराती नहीं दिखा। उसने ग्रामीणों से पता किया तो ग्रामीणों ने बताया कि बरात तो पहुंची ही नहीं। उसके बाद वह बरातियों की खोजबीन के लिए निकल पड़ा। घण्टों बाद वह पुनः उस स्थान पर पहुँचा तो उसे वहां विचित्र पेड़ दिखाई दिए। कहा जाता है माता के प्रकोप के कारण सारे बराती पेड़ों के स्वरूप में बदल गए थे। आज भी बरातियों जैसे पेड़ वहां खड़े हैं,ये ऐसे दिखते हैं जैसे कि ये बराती हो क्योंकि इन पेड़ों की बनावट ऐसे हैं जैसे कि बराती हो क्योंकि इन पेड़ों की बनावट ऐसे हैं जैसे कि किसी पेड़ ने ढोल, दमाऊं, मसकबीन पकड़ रखा हो। मान्यता है कि इन पेड़ों पर अगर कोई धारदार वस्तु से चीरा लगाया जाए तो इन पेड़ों से खून की तरह दिखने वाला तरल पदार्थ निकलता है ।