जहां भक्तों को रूप बदलकर दर्शन देती हैं माता
प्रीती नेगी।
समाचार इंडिया। देहरादून। देवभूमि उत्तराखण्ड में के कण, कण में देवी देवताओं का वास है, व अनादिकाल से यह भूमि, ऋषि मुनियों की तपस्थली रही है। यहां पग, पग पर आस्था के केंद्र मठ मंदिर आवर शिवालय विराजमान हैं। मां काली माता को समर्पित एक ऐसा ही मन्दिर है धारी देवी। मान्यता है कि मां धारी सुबह बाल्य अवस्था, दिन में यौवना और साइन सायंकाल में वृद्धा रूप में भक्तों को दर्शन देती हैं। धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी के साथ ही श्रद्धालुओं की रक्षक देवी माना जाता है। कहा जाता है कि माता अपना रूप बदलती है। प्रात: काल में कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा रूप धारण करती हैं। पौडी जनपद में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर, रुद्रप्रयाग के मध्य कलियासौड़ में पतित पावन अलकनंदा के तट पर विराजमान है धारी देवी का यह मन्दिर देवी काली को समर्पित है। धारी देवी को देवभूमि की पालक और संरक्षक माना जाता है। माँ धारी देवी जनकल्याणकारी के साथ ही दक्षिणी काली माता कहा जाता है । कहां जाता है कि माता रानी की मूर्ति का ऊपरी आधा हिस्सा सदियों पहले अलकनंदा में बहकर यहां आया था, तब से मूर्ति यही पर विराजमान हैं। मंदिर में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में विराजमान है,जबकि मूर्ति का निचला आधा हिस्सा रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ में स्थित है, जहां माता की काली के रूप में आराधना की जाती है। मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग में स्थापित की गई थी। प्रचलित कथा व मान्यता के अनुसार एक रात जब भारी बारिश हो रही थी और अलकनंदा उफान पर थी। इसी दौरान धारी गाँव के समीप गांव वालों को किसी स्त्री की चीखने, चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। गाँव वाले आवाज सुनकर उस ओर दौड़ पड़े। जब वह उस स्थान पर पहुँचे तो उन्हें पानी में मूर्ति तैरती दिखाई दी और आवाज उसी मूर्ति से आ रही थी। इसके बाद गांववासियों ने उफनाती अलकनन्दा से उस मूर्ति को निकाल लिया। कुछ पल में मूर्ति आवाज आई और ग्रामीणों को मूर्ति ने उसे उसी जगह स्थापित करने का आदेश दिया। आदेश पर ग्रामीणों ने मूर्ति को अलकनन्दा के तट पर स्थापित कर दिया। धारी गाँव के समीप स्थापित होने केे बाद लोगों ने इस स्थल को धारी देवी का नाम दिया गया। दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीनकाल में किसी सौतेली मां ने अपनी बेटी की हत्या करवा दी थी, और उसके टुकड़े करवाकर अलकनंदा में फेंक दिया। उसके बाद उसका सिर व ऊपरी भाग अलकनंदा में बहता हुआ धारी गांव तक पहुंचा तो एक धुनार( नाविक) ने उसे निकाल कर अलकनंदा के तट पर स्थापित कर दिया। भक्तों के अनुसार माता रानी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। माता सुबह लड़की, दिन में स्त्री, और सायं को बूढ़ी औरत के रूप में दर्शन देती है । पुजारियों व स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग से स्थापित है । कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में विराजमान होती हैं, जबकि धारी देवी में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में है । मंदिर में स्थित प्रतिमाएँ साक्षात व जाग्रत के साथ ही पौराणिककाल से विधमान है । दुर्गा पूजा व नवरात्री में विशेष पूजा मंदिर में होती है। मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्र में हजारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों लेकर दूर-दूर से माता के दर पर पहुँचते हैं।