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सती ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में निभाई सक्रिय भूमिका

समाचार इंडिया/सतपुली।

संघ,भाजपा और दुर्गा वाहिनी की सशक्त स्तंभ रही और रामजन्मभूमि आन्दोलन और उत्तराखंड राज्य आंदोलन सहित विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाने वाली सुखरो की पूर्व जिला पंचायत सदस्य व वरिष्ठ भाजपा नेत्री सुधा सती का निधन हो गया। वह 75 की थी।  कोटद्वार के मानपुर निवासी सुधा कुछ समय से बीमार चल रही थी।  सती ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और वह राज्य आंदोलन की लड़ाई में कई बार जेल गई । सुधा सती ने लगभग 42 साल तक सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई और कई बार जेल गई। वह 1989 में वह जनपद पौड़ी भाजपा महिला मोर्चा की महामंत्री और अध्यक्षा बनी लेकिन रामजन्मभूमि आंदोलन के समय उन्हें दुर्गा वाहिनी का दायित्व भी सौंप दिया गया। उन्होंने कोटद्वार में महिलाओं की एक टीम बनाई और लगभग एक दशक तक दुर्गा वाहिनी को गढ़वाल में विभिन्न आंदोलनों का पर्याय बनाया। उस दौरान उन पर पुलिस ने कई धाराओं में उन्हें निरुद्ध किया, जिसके बाद वह भूमिगत रही। उन्होंने भूमिगत होते हुए भी  आंदोलनों को धार दी।  उन्होंने कोटद्वार में लाटरी के विरुद्ध आन्दोलन की शुरुआत की । इसपर उन पर  कई मुकदमे दर्ज किए गए लेकिन, वह झुकी नहीं और उन्होंने लाटरी को बंद करवाकर आंदोलन को अंजाम तक पहुँचाया। उत्तराखण्ड आन्दोलन में तो वे कोटद्वार में उस आन्दोलन की सीधी धुरी ही थीं। उनकी दुर्गा वाहिनी महिलाओ की टीम ने उस आन्दोलन को अपनी कर्मठता से स्वयं में ही समेट लिया। यूं तो आन्दोलन की कई धाराएं थी लेकिन सुधा सती के नेतृत्व में कोटद्वार की महिलाओ ने उस आन्दोलन को एक अलग ही ऊंचाई दी। उन्होंने सर्वप्रथम कोटद्वार के स्थानीय मालवीय उद्यान में दिसंबर और जनवरी  में लगातार 93 दिनों का महिलाओं के साथ धरना दिया। कहा जाता हैं कि उनके नेतृत्व में  राज्य आंदोलन की तीव्रता से बौखला कर उस एक एसओ ने थाने के आगे से गुजर रही रैली का  नेतृत्व कर रही  सती पर रिवाल्वर तान दिया था।  उन्हे राज्य आंदोलन में कई बार भूमिगत रह कर काम  किया।  मुजफ्फरनगर कांड के बाद सारे उत्तराखंड में कर्फ्यू  लगा दिया गया था। तब उन्होंने कोटद्वार के देवी रोड में सैकड़ों महिलाओं के साथ  कर्फ्यू का उल्लंघन कर रैली निकाली, जिसके बाद उत्तराखंड में आन्दोलन ने पुनः जोर पकड़ा।  सुधा सती गढ़वाल मद्य निषेध समिति की संयोजिका थी तो उन्होनें  कोटद्वार  से शराब की दुकानों को शहर से बाहर निकालने के लिए आन्दोलन चलाया और  उनके ऊपर कई मुकदमे हुए। इसके बावजूद सती ने हार नहीं मानी। सरकार को हार माननी पड़ी और कोटद्वार शहर से शराब की दुकानों को शहर से बाहर  शिफ्ट करना पड़ा था। उन्हें 1996 में आरएसएस की सेवा भारती का दायित्व दिया गया तो उन्होनें कोटद्वार की दलित बस्तियों में सेवा बस्तियां स्थापित करके कई कल्याण केन्द्र चलाए। उन्होंने कुछ समय संघ के उत्तराखंड के प्रथम मातृमंडल प्रमुख का दायित्व भी सम्भाल।

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