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बेहतर कार्य करने वाले को प्रोत्साहित करना जरूरी : मीणा

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समाचार इंडिया। पौड़ी। पूर्व आईएएस सीताराम मीणा तथा जिलाधिकारी डॉ  विजय कुमार जोगदण्डे की संयुक्त अध्यक्षता में विकासभवन सभागार में ब्रह्यकुमारी विश्वविद्यालय ईश्वरी द्वारा आयोजित स्ट्रेस फ्री एडमिनिस्ट्रेशन(तनावमुक्त प्रशासन) विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में अपने शुभारंभ संदेश में में ब्रह्यम कुमारी विश्व विद्यालय से संबंधित पूर्व आयुक्त(आईएएस) सीताराम मीणा ने स्ट्रेस फ्री एडमिनिस्ट्रेशन विषय पर कहा कि अपने प्रशासनिक जीवन के अनुभवों के साथ ही सार्वजनिक जीवन तथा आध्यात्मिक चिजों से जुड़ने के पश्चात के अनुभावों का जिक्र करते हुए कहा कि सरकारी कामकाज के दौरान अधिकारी व कार्मिक किस-किस तरह के तनाव झेलते हैं और वे कौन से तरिके होते हैं जिनको अपनाने से प्रशासनिक कामकाज करते समय तनावमुक्त व खुशहाल जीवन जिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उनका अनुभव कहता है कि कभी भी किसी भी व्यक्ति को अधिक तनाव देकर -परेशान करके उसकी बेस्ट क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सकता तथा जब भी कोई व्यक्ति बेहतर कार्य करता है तो यदि उतनी तारीफ जितने के वह काबिल हो की जाय तो उसका बेहतर आउटकम निकाल सकता है। उन्होंने कहा कि तनाव से बचने के लिए एक बेहतर तरिका यह भी है कि जो चिजें हमारे क्षेत्राधिकार में हैं हम उसमें ही बदलाव की कोशिश करें तथा जो हमारे क्षेत्राधिकार से बाहर की चिजें हैं उसमें केवल सिफारिश के अतिरिक्त कुछ ना करें बल्कि उसको उसी रूप में स्वीकार किया जाय, क्योंकि हम नियम बनाने के पार्ट नहीं बल्कि निर्णयों को लागू करने(एग्जीक्यूटिव) के पार्ट हैं। जो निर्णय हो चुके हैं हम उनको अपनी बेहतर क्षमता से अधिकतम लोगों को उसका लाभ देने का प्रयास करें।
स्ट्रेस मुक्ति का उन्होंने उपाय बताते हुए कहा कि हम अपने को जब तक केवल शरीर समझते रहेंगें तब तक हमारे पास जो भी ऊर्जा है वह भी कम होती जाती है बल्कि हमें अपने आपको आत्मा समझना चाहिए और उसका कनेक्शन सर्वशक्तिमान परमात्मा से करना होगा। चूंकि आत्मा शक्तिशाली है, ज्ञानवान है, ऊर्जावान है इसलिए आत्मा के अनुसरण से हममें ऊर्जा का लगातार संचार बना रहेगा तथा हम ऊर्जावान बने रहेंगे-तनाव मुक्त रहेंगे। उन्होंने कहा कि कितनी अजीब बात है कि हम अपने गैजेटस (मोबाइल की बैटरी) को रोजना चार्ज करते हैं किन्तु अपनी आत्मा को चार्ज नहीं करते। आत्मा को चार्ज करने का मतलब है कि हम 24 घंटे में कम से कम 1 घंटा अपने लिए दें। उस एक घंटे में हम अपने आपको अकेला करके अपने आपसे बाते करें, अपने अन्दर झांके कि हम इस दुनियां में क्यों हैं, हम क्या चाहत हैं, हम क्या कर रहे हैं, हमें क्या करना चाहिए? इसी को मेडिटेशन(ध्यान) कहते हैं। इससे हम अपने को नियंत्रित कर पायेंगे, हमारा मन भटकेगा नहीं, हमारा काम में मन लगेगा और काम करते समय आनंद आयेगा।
इस दौरान ब्रह्मकुमारी विश्व विद्यालय के महरचंद ने कहा कि आज दुनियां की 70 प्रतिशत बिमारियां तनाव के चलते हो रही हैं। दुनिया का कोई भी जीव चिन्ता नहीं करता, जबकि मनुष्य सबसे ज्यादा सक्षम-बुद्धिजीवी होने के बाद भी चिंता-तनाव से मरा जा रहा है।
ब्रह्यकुमारी विश्वविद्यालय के हरीश कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि समस्या हर एक के जीवन में है लेकिन हम उसको किस तरह देखते हैं यदि नजरिया तय करता है कि हम तनाव में रहेंगे या तनावमुक्त । उन्होंने कहा कि हम इस जीवन में अपने-अपने रोल(अभिनय) करने आये हैं और हमें अपने अभिनय को उसी तक सीमित रखना चाहिए जो हमें दायित्व मिला है।

इस दौरान जिलाधिकारी डॉ0 विजय कुमार जोगदण्डे ने कहा कि प्रयास करने वाले(देने वाले) और ग्रहण करने वाले के बीच यदि तालमेल होगा, एक सुर होगा तो स्ट्रेस नहीं होगी। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी को एक बस कन्डक्टर (परिचालक) की भांति व्यवहार करना चाहिए। जिस प्रकार परिचालक का बस में यात्रा करने वालों से कोई संबंध नहीं होता फिर भी यात्रियों से सही पैसे लेता है, सही पैसे देता हैै और जो पैसे प्राप्त करता है उसका भी वह अपने को स्वामी नहीं मानता बल्कि उसकी सुरक्षा करके उसे राजकोष में जमा करता है और यात्रियों को सुरक्षित और सहजता से उनके गंतव्य तक पहुंचाता है, ठिक उसी तरह एक अधिकारी को भी सरकार व शासन द्वारा जो नियम निर्धारित किये गये हैं उसका खुशी-खुशी अनुपालन करते हुए पादर्शिता व निष्ठा से अधिकमत लोगों के कल्याण की भावना से काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नजरिये का भी बहुत फर्ख पड़ता है। हमारा नजरिया दूसरों के साथ सदभाव, विनम्र, हंसमुख होना चाहिए। उन्होंने इसको उदाहरण द्वारा समझाया कि जैसे सौ लोगों की पंक्ति में यदि सबसे आगे वाला ब्यक्ति सेवा प्रदाता से भला-बुरा कहेगा तो वह सेवा प्रदाता पंक्ति के शेष सभी 99 लोगों के साथ उसी तहष में पेश आयेगा। जबकि यदि पहला व्यक्ति उसके साथ हंसमुख और विनम्रता से पेश आएगा तो सेवा प्रदाता व्यक्ति बाकि 99 लोगों के साथ भी हंसमुख और विनम्रता से ही पेश आयेगा। जीवन में ऐसे बहुत से अनुकरणीय उदाहरण मिल जाऐंगे जिनको अपनाने से तनावमुक्त रहते हुए एक प्रशासक बेहतर ऊर्जा से और क्षमता से अच्छे परिणाम दे सकता है।

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