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स्वयम्भू खम्बे के रूप में यह विराजमान है मां चंडी

  • प्रीती नेगी

समाचार इंडिया। देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में कण, कण में साक्षात पर देवी देवता विराजमान है और यह पग, पग पर  मठ, मंदिर और सिद्धपीठ है। उन्ही में से एक है चंडी देवी का मंदिर । हरिद्वार जिले के घने जंगलों के बीच नील पर्वत पर स्थित यह स्थान अनादिकाल से भक्तों और श्रद्धालुओं का आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। मां चंडी को समर्पित यह मंदिर देश  के 52 शक्ति पीठों में से एक है। यहां मां जगदम्बा स्वयम्भू खम्बे के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर का जीर्णोद्धार आठवीं शताब्दी में जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने विधिवत रूप से कराया था। इसके बाद 1872 में कश्मीर के राजा सुचेत सिंह माता के दर्शन को आए और उन्होंने मंदिर का एक बार फिर से जीर्णोद्धार कराया था।  पौराणिक कथा के अनुसार शुंभ, निशुंभ और महिसासुर धरती और स्वर्ग लोक पर आतंक मचाने लगे।  देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया, लेकिन  देव सफल नहीं हो पाए। इसके बाद देवगण भगवान भोलेनाथ के दरबार में के पास कैलाश पहुंचे और उनसे आतंक से मुक्ति दिलाने की गुहार लगाई। तभी भगवान भोलेनाथ के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया। इसके बाद मां ने चंडी रूप धारण कर दैत्यों से युद्ध किया। इसी दौरान शुंभ और निशुंभ मां चंडी से बचकर नील पर्वत पर आकर छिप गए, मां चंडी उनका पीछा करते हुए वहां पहुंची और खम्बे का रूप धारण कर लिया। इसके बाद माता ने दोनों दैत्यों का वध कर दिया। इसके बाद स्वर्गलोक के सभी देवताओं ने मानव जाति के कल्याण के लिए माता को इसी स्थान पर विराजमान रहने का वर मांगा। कहते हैं तब से  माता यहां पर विराजमान होकर भक्तों का कल्याण करती हैं। मान्यता है कि चंडी देवी मंदिर में मां की आराधना करने से अकाल मृत्यु, रोग नाश, शत्रु भय आदि कष्टों से मुक्ति मिलती है। यहां वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्रि पर माता के दर्शन को भक्तों की अथाह भीड़ उमड़ती है।

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