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यहां गिरा था माता सती का कुंजा

  • प्रीती नेगी

समाचार इंडिया/ देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में आस्था के प्रतीक हजारों मठ, मन्दिर, सिद्धपीठ और शिवालय हैं। इन्ही में से एक है टिहरी जिले में स्थित सिद्धपीठ कुंजापुरी। यह सिद्धपीठ कुंजापुरी नाम के पर्वत पर स्थित है। पुराणों के अनुसार यह मंदिर जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। शिवालिक पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर से हिमालय पर्वतमाला के स्वर्गारोहनी, गंगोत्री, बंदरपूँछ, चौखंबा और भागीरथी घाटी के साथ ही ऋषिकेश, हरिद्वार और दूनघाटी का मनोहर दृश्य के साथ ही सूर्योदय और सूर्यास्त का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने अपने निवास स्थान कनखल हरिद्वार में एक भव्य यज्ञ का आयोजन कराया और इस भव्य यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को छोड़कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया।  पिता द्वारा पति का  अपमान करने पर माता सती ने यज्ञ में कूदकर जान दे दी  थी। भगवान शिव इस सूचना पर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने अर्ध-देवता वीरभद्र और शिव गणों को दक्ष से युद्ध करने के लिए भेज दिया। वीरभद्र ने यज्ञ को तहस- नहस कर कर दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। सभी सभी देवताओं के अनुरोध पर शिव ने राजा दक्ष को दोबारा जीवन दान देकर बकरे का सिर लगा दिया। इसके बाद भगवान शिव सती के मृत शरीर उठाकर ब्रह्माण्ड  में घूमने लगे। शिव को वियोग से छुटकारा दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने  सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था और सती के शरीर के टुकड़े पृथ्वी के कई स्थानों पर गिरे । कुंजापुरी पर्वत पर माता सती का हाथ (कुंजा) गिरा था। इसीलिए यह मंदिर कुंजापुरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस मन्दिर की  खाशियत यह है कि इस मंदिर में ब्राह्मण के बजाए भंडारी जाति के राजपूत लोग पूजा- पाठ करते हैं।  मंदिर में वर्षभर भक्तों की भीड़ माता के दर्शन को उमड़ती है।

 

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