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यहां मां काली ने बालिका के रूप में लिया जन्म

समाचार इंडिया/देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड का ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से सम्पूर्ण विश्व में अलग ही स्थान रखता है । त्रिकालदर्शी महर्षि वेदव्यास ने जप और तप के लिए इसी भूमि को चुना और अठारह पुराणों की रचना की ।  रुद्रप्रयाग जिले का कालीमठ घाटी भी युगों से  साधकों की तपस्थली रही है। यहां कई मंदिर है जो कि भक्तों के आस्था का केंद्र है। ऐसा ही एक मन्दिर है जिसे सिद्धपीठ कालीमठ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को देश के प्रमुख सिद्ध शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। यहां माता काली यहां अपनी बहनों माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ स्थित है। किवदंती है कि माता सती ने पार्वती के रूप में दूसरा जन्म इसी शिलाखंड में लिया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी और मां काली ने इस स्थान पर 12 वर्ष की बालिका के रूप में जन्म लिया था। कहा जाता है जब देवी, देवताओं से असुरों के आतंक के बारे में सुना तो मां का शरीर क्रोध से काला पड़ गया था। इसके बाद उन्होंने विकराल रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का संहार किया था। कालीमठ मंदिर के समीप मां काली ने रक्तबीज का वध किया था और उसका रक्त जमीन पर न पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उसके रक्त को चाटना शुरू किया था। जिस शिला पर माँ काली ने रक्त बीज का वध किया था वह शिला आज भी अलकनन्दा नदी किनारे स्थित है । कहा जाता है कि इस शिला पर माँ काली ने रक्तबीज का सिर रखा था। आज भी यहां पर मां काली के पैरों के निशान मौजूद हैं। मान्यता है कि कालीमठ में माँ काली ने जिस शीला पर दानव रक्तबीज का वध किया , उस शीला से हर वर्ष दशहरा के दिन खून रिस्ता है।  शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के बाद भी जब मां काली शांत नहीं हुई , तो भगवान शिव काली मां का गुस्सा शांत करने की मिन्नते करने लगे और उनके चरणों के नीचे लेट गए थे , जैसे ही माँ काली ने  शिव के सीने में पैर रखा तो माँ काली का क्रोध शांत हो गया और वह इस कुंड में अंतर्ध्यान हो गई । माना जाता है कि माँ काली इस कुंड में समाई हुई है । इस मंदिर से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर एक दिव्य शिला है जिसे कालीशिला कहा जाता है। कालीशिला में देवी-देवता के 64 यंत्र हैं। कहते हैं इन्हीं यंत्रों से मां दुर्गा को दैत्यों का संहार करने की शक्ति मिली थी। कालिदास ने भी यही साधना की थी और मां काली को प्रसन्न कर विद्वता प्राप्त किया था । कालीमठ मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। मन्दिर के अंदर स्थित एक कुंड है, जिसे भक्त कुंडी कहते हैं और इसकी पूजा की जाती है। कुंड को वर्ष में एक दिन शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर ही खोला जाता है। अष्टमी की आधी रात को होने वाली पूजा के दौरान सिर्फ मंदिर के पुजारी ही सम्मलित होते हैं। हर साल नवरात्रि में कालीमठ मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है।

प्रीती नेगी

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