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बसन्त ऋतु आगमन का सन्देश देता फूलदेई

  • प्रीती नेगी।
  • समाचार इंडिया।देहरादून।

कुमाऊं गढ़वाल में इसे फूलदेई और जौनसार में गोगा के न से प्रसिद्ध लोक त्योहार फूलदेई  को चैत्र मास की संक्रांति से मनाने की परम्परा प्राचीन है। इसलिए यहां हिन्दू नव वर्ष का प्रथम दिन फूलदेई से शुरू होता है। चैत्र मास में बसंत ऋतु का आगमन हुआ रहता है। बहुत से इलाके जैसे कुमाऊं और गढ़वाल में एक या दो नहीं बल्कि पूरे आठ दिनों तक फूलदेई मनाया जाता है। इके अतिरिक्त कुछ इलाकों में चैत्र का पूरा महीना ही फूलदेई मनाया जाता है। फूलदेई त्योहार बच्चों द्वारा मनाए जाने के कारण इसे लोक बाल पर्व भी कहते हैं। कुछ स्थानों पर फूलदेई त्योहार, फुलारी महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है और कुछ गांवों में फूलदेई त्योहार के आठवें दिन घरों में उगाई गयी जौ की बालियां प्राकृतिक जल स्रोतों पर विसर्जित करके फूलदेई त्योहार को बी माता के रूप में मनाने की परम्परा है । फूलदेई त्योहार को नौनिहालों ब्रह्म बेला पर घरों की चौखट पर अनेक प्रजाति के पुष्प बिखर कर मनाते हैं और बसन्त ऋतु आगमन का सन्देश देते हैं। फूलदेई त्योहार में घोघा नृत्य मुख्य आकर्षण माना जाता है और ब्रह्म बेला पर नौनिहालों द्वारा अनेक प्रजाति के पुष्प बिखेरने के साथ अनेक प्रकार के गीत गाने की परम्परा आज भी जीवित है। चैत्र मास के आठवें दिन फूलदेई त्योहार को सामुहिक भोज के साथ मनाया जाता है और घोघा को गाँव के किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित किया जाता है । फूलदेई त्योहार को चैत्र मास की संक्रांति से मनाने की परम्परा प्राचीन है। फाल्गुन माह की मासान्त को नौनिहालों द्वारा सूर्य छिपने के बाद खेत – खलिहानों से फ्यूली सहित अनेक प्रजाति के पुष्पों को रिंगाल की टोकरी में एकत्रित किया जाता है एवं रात्रि में पुष्पों को खुले आसमान में रखा जाता है। टोकरी में एकत्रित पुष्पों को बन्द कमरे में रखने पर पुष्प जूठे माने जाते हैं। चैत्र मास की संक्रांति से ब्रह्म बेला पर गांव के मध्य मन्दिरों मे पुष्प अर्पित करने के बाद फूलदेई त्योहार शुरू हो जाता है तथा नौनिहालों द्वारा हर घर की चौखट पर पुष्प बिखेर कर बसन्त आगमन का सन्देश दिया जाता है।फूलदेई से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है जब पहाड़ों मं घोघाजीत नामक राजा रहता था। इस राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम था घोघा। घोघा (Ghogha) प्रकृति प्रेमी थी। एक दिन छोटी उम्र में ही घोघा लापता हो गई। घोघा के गायब होने के बाद से ही राजा घोघाजीत उदास रहने लगे। तभी कुलदेवी ने सुझाव दिया कि राजा गांवभर के बच्चों को वसंत चैत्र की अष्टमी पर बुलाएं और बच्चों से फ्योंली और बुरांस देहरी पर रखवाएं। कुलदेवी के अनुसार ऐसा करने पर घर में खुशहाली आएगी। इसके बाद से ही फूलदेई मनाया जाने लगा।

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