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केदारघाटी में लाई मेले की धूम

लक्ष्मण सिंह नेगी/समाचार इंडिया/ऊखीमठ। 

6 माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों का लाई मेला बडे़ धूमधाम से मनाया गया। लाई मेला नीचे इलाकों में मनाया जाता है तथा लाई मेले के बाद भेड़ पालक फिर उंचाई वाले इलाकों की ओर चले जाते है तथा दीपावली पर्व से पहले गांव की ओर लौट आते है। लाई मेले में भेड़ पालकों द्वारा ऊन की छटाई की जाती है तथा पूर्व में लाई मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद की पांच गते को मनाये जाने की परम्परा थी मगर वर्तमान समय में भेड़ पालकों द्वारा सुविधा अनुसार अलग – अलग तिथियों पर लाई मेला मनाया जा रहा है। लाई मेला शीत ऋतु आगमन का द्योतक माना जाता है। पूर्व में लाई मेले के दिन भेड़ पालकों द्वारा ऊन व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों द्वारा ऊन का आदान- प्रदान किया जाता था मगर धीरे – धीरे ऊन व्यवसाय में गिरावट आने के कारण भेडो़ की ऊन का आदान – प्रदान करने की परम्परा विलुप्त हो चुकी है। 6 माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों के दाती व लाई त्यौहार मनाने की परम्परा युगों पूर्व की है। भेड़ पालकों द्वारा दाती त्यौहार पुल पुरोहित द्वारा निर्धारित तिथि पर रक्षाबंधन के आसपास मनाया जाता है। दाती त्यौहार के दिन भेड़ पालकों के अराध्य देव क्षेत्रपाल, सिद्ववा – विधुवा तथा वन देवियों के पूजन के बाद भेड़ों के सेनापति की नियुक्ति की जाती है। लाई त्यौहार में भेडो़ की ऊन की छटाई की जाती है। इन दिनों केदार घाटी सहित विभिन्न ऊंचाई वाले इलाकों में लाई मेला धूमधाम से मनाया जा रहा है। लाई मेले में ग्रामीण व भेड़ पालकों के परिजन भी बढ़ – चढकर भागीदारी करतें है। 6 माह विसुणीताल के निकट प्रवास करने वाले भेड़ पालक बीरेन्द्र सिंह धिरवाण ने बताया कि लाई मेला मनाने की परम्परा युगों पूर्व की है। टिगंरी के बुग्यालों में 6 माह प्रवास करने वाले भेड़ पालक प्रेम भटट् ने बताया कि भेड़ पालकों द्वारा लाई मेला निचले हिस्सों में मनाया जाता है तथा लाई मेले के बाद भेड़ पालक ऊंचाई वाले इलाकों की ओर अग्रसर हो जाते है तथा दीपावली के निकट गाँव लौटने की परम्परा है। 6 माह कुलवाणी के बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालक बिक्रम सिंह रावत ने बताया कि लाई मेले में सभी लोग बढ़ – चढकर भागीदारी करते है तथा दाती त्यौहार में सिर्फ भेड़ पालक ही शामिल होते है। वन विभाग के अनुभाग अधिकारी आनन्द सिंह रावत ने बताया कि लाई मेले में भेड़ पालकों व ग्रामीणों में आपसी प्रेम व भाईचारा देखने को मिलता है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् का कहना है कि यदि प्रदेश सरकार भेड़ पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने की पहल करती है तो लाई मेला भव्य रूप ले सकता है तथा ऊन व्यवसाय में फिर इजाफा हो सकता है। कालीमठ घाटी के सामाजिक कार्यकर्ता बलवन्त रावत ने बताया कि भेड़ पालकों का जीवन किसी साधना से कम नहीं है क्योंकि भेड़ पालक अनेक परेशानियों का सामना करने के बाद भी भेड़ पालन व्यवसाय को जीवित रखने के लिए भरसक प्रयास कर रहे है। प्रधान कविल्ठा अरविन्द राणा ने बताया कि पूर्व में लाई मेला एक निश्चित तिथि पर मनाया जाता था मगर अब भेड़ पालक अपने सुविधा के अनुसार अलग – अलग तिथियों पर लाई मेला मना रहे है। प्रधान पाली सरूणा प्रेमलता पन्त ने बताया कि लाई मेला धीरे – धीरे भव्य रूप ले चुका है यदि पशुपालन विभाग भेड़ पालकों को प्रोत्साहन करता है तो भविष्य में लाई मेला और अधिक भव्य रूप ले सकता है। प्रकृति प्रेमी शंकर पंवार ने बताया कि लाई मेले में शामिल होने से भेड़ पालकों व ग्रामीणों में आत्मीयता झलकती है।

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